कुछ महीनों में बिहार में चुनाव होने वाला है। भारत का सबसे गरीब राज्य बिहार को विकास नामक चीज का बेसब्री से इंतजार है। कभी बिहार भारत के अग्रणी विकासशील राज्यों में गिना जाता था, लेकिन लालू राज में बिहार की न सिर्फ कानून व्यवस्था गर्त में गई बल्कि विकास की पहिया भी थम गई। हालांकि नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनने के बाद काफी कुछ किया, लेकिन बिहार एक बार जो पिछड़ा राज्य बना, वह फिर से आगे नहीं निकल पाया। लोगों की आय बढ़ाने के लिए बिहार में जो किया जाना था, वह नहीं हुआ। यानी उद्योग-धंधे, व्यवसाय-वाणिज्य में वृद्धि। यही वजह है कि बिहार में आज प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है।
वित्तीय वर्ष 2023-24 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय मात्र 68,828 रुपये थी। और, इस मामले में बिहार भारत के सभी प्रदेशों में सबसे आखिरी पायदान पर खड़ा है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में गोवा प्रथम है-492,648 रुपये। 22वें नंबर पर ओडिशा (163,101 रुपये), 24वें नंबर पर पश्चिम बंगाल (154,119 रुपये), 31वें नंबर पर झारखंड (115,960 रुपये), 32वें नंबर पर उत्तर प्रदेश (104,126 रुपये) और आखिर में 33वें नंबर पर बिहार। कहीं का प्रति व्यक्ति आय से संबंधित आंकड़ा यह बताता है कि वह देश या प्रदेश कितना विकसित है।
कई दशकों से बिहार देश का सबसे गरीब राज्य बना हुआ है। एक बिहारी होना- बिहार में रहने वालों से ज्यादा जो लोग भारत के दूसरे राज्यों में रहते हैं, भले ही उनका जन्म दूसरे राज्यों में ही क्यों न हुआ हो, लेकिन उनकी पहचान बिहारी की है-किसी गाली से कम नहीं है। हम बचपन से बंगाल में रहते हुए यह देख रहे हैं। दिल्ली में भी देखा है।
आज यह दिखता है कि गांवों में घर-घर नल कनेक्शन है, स्ट्रीट लाइटें हैं जो रात को जलती भी हैं। गांव के रास्ते कंक्रीट के बन चुके हैं। लेकिन नीतीश कुमार को जो करना था, कर लिया। अब वे चूक चुके हैं। लालू प्रसाद की राजनीतिक विरासत आगे बढ़े रहे तेजस्वी यादव से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। अब बिहार को एक ऐसे युवा नेता की जरूरत है जो उसे विकसित बनाने का सपना देखता हो। बिहारियों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने का क्षमता रखता हो। बिहार चुनाव के लिए जी-जान से तैयारियों में लगे जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर अपने इंटरव्यू बिहार के विकास और बिहारियों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने का खाका पेश कर रहे हैं।
महाराष्ट्र और गुजरात पहले से ही काफी विकसित हैं, लेकिन वे विकास के नये किस्से हर दिन लिख रहे हैं। तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश एक ट्रिलियन ( 1000 बिलियन डॉलर ) की इकॉनोमी (जीडीपी) बनने की समय-सीमा तय कर रहे हैं। लेकिन बिहार के नेता सालों पुरानी उसी जाति की राजनीति करने में व्यस्त हैं।
बिहार को चंद्रबाबू नायडू जैसे विजन वाले नेता चाहिए जो वस्तुतः आज के हैदराबाद के वास्तुकार हैं। हैदराबाद जो पहले आंध्र प्रदेश के विकास का इंजन बना, और अब तेलंगाना का है। तेलंगाना आज देश का पांचवां और बड़े राज्यों में प्रथम है जहां की प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है-356,564 रुपये। क्या प्रशांत किशोर को बिहार मौका देगा, यह तो बिहार के लोग ही ज्यादा समझते हैं। बिहार के बाहर रहने वाले लाखों-करोड़ों बिहारियों का मान-सम्मान बिहार से वाबास्ता है।
अपनी पार्टी जन सुराज का जनाधार बनाने के लिए गांव-गांव पदयात्रा कर रहे प्रशांत किशोर कह रहे-मैं बिहार को बदलने के उद्देश्य से सक्रिय राजनीति में आया हूं। वह यह भी कहते हैं कि मुख्यमंत्री पद उनका कोई सपना नहीं है, बल्कि वह इससे कहीं अधिक की सोच रखते हैं। जाहिर है, वह दूर की कौड़ी ( प्रधानमंत्री की कुर्सी) के बारे में सोच रहे हैं।
संघर्षों के कालखंड में कभी-कभी ही ऐसा कोई मौका आता है जब इतिहास बनता है। कोई एक शख्स आता है और नई लकीर खींच देता है। अगर 1991 में नरसिंहा राव प्रधानमंत्री नहीं बने होते को क्या भारत लाइसेंस राज से मुक्त हो पाता, और क्या आज दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का दंभ भर रहा होता?