बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के विरोध की मुखर आवाज बने इस्कॉन संन्यासी चिन्मयकृष्ण दास को एक बार फिर से बांग्लादेश ने जेल से रिहा करने से इनकार कर दिया है। हालांकि हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब-तलब किया है कि देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार चिन्मयकृष्ण को जमानत क्यों नहीं दिया जाए। निचली अदालतों में सुनवाई नहीं होने के बाद चिन्मयदास का मामला हाईकोर्ट में चला गया। हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के बाद उम्मीद बनी थी कि हिंदू संन्यासी की रिहाई संभव हो पायेगी लेकिन अब तक रिहाई नहीं हुई है।
हाईकोर्ट ने दो सप्ताह में मांगा जवाब
मंगलवार को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायाधीश मोहम्मद अतवर रहमान और न्यायाधीश मोहम्मद अली रेजा की खंडपीठ ने सरकार को दो सप्ताह का समय दिया है ताकि वह हलफनामा देकर बताये कि आखिर क्यों नहीं चिन्यमकृष्ण दास को रिहा किया जाए। इस हिंदू संन्यासी को गत 25 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था। पांच अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार का देश में हुए छात्र आंदोलन के विद्रोह के बाद पतन हो गया था। तब अराजकता के माहौल में हिंदुओं पर व्यापक हत्याचार, लूटपाट और मंदिरों में तोड़फोड़ की घटनाएं हुई थीं। इस्कॉन के संन्यासी चिन्मयकृष्ण दास ने इसका जोरदार आवाज में विरोध किया था। उनके नेतृत्व में देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन किये गये थे। इस दौरान ही उन्हें बांग्लादेश के झंडे का अपमान करने के आरोप में देशद्रोह की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था।
कोर्ट में पैरवी के वकील तक नहीं मिला
चिन्मयदास कृष्ण को अगले दिन 26 नवंबर को चटगांव डिस्ट्रक्टि कोर्ट में पेश किया गया तो वहां हिंदू समुदाय ने जबरदस्त विरोध किया था। इस हंगामे के दौरान एक वकील आलिफ की हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने इस हत्या के लिए हिंदू आंदोलकारियों को जिम्मेवार बताते हुए 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इसके साथ ही कोर्ट परिसर में तोड़फोड़ के आरोप में 40 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया और उन्हें भी गिरफ्तार किया।
बांग्लादेश सरकार जमात जैसी कट्टरपंथी पार्टी के दबाव में
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के जाने से बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में जो अंतरिम सरकार बनी है, उस पर बांग्लादेश की इस्लामी कट्टरपंथी पार्टी जमात का भारी प्रभाव है। यही कारण है कि जब तीन दिसंबर को चिन्मयदास को कोर्ट में पेश किया गया तो जमात और अन्य कट्टरपंथियों के दबाव में कोई वकील कोर्ट में दास की पैरवी के लिए नहीं मिला। इतना ही नहीं, जब एक वरिष्ठ वकील संन्यासी के पक्ष में सुनवाई के लिए कोर्ट गये तो उनके साथ बुरी तरह मारपीट की गई। गत दो जनवरी को भी सुनवाई की तारीख थी, उस दिन भी जमानत नहीं मिली।
भारत सरकार के अनुरोध को भी किया खारिज
इस्कॉन संन्यासी चिन्मयदास की रिहाई के लिए जहां बांग्लादेश में हिंदुओं ने प्रदर्शन किया था, वहीं कोलकाता, बंगाल, त्रिपुरा समेत भारत के कई हिस्सों में प्रदर्शन हुए थे। यहां तक भारत सरकार ने भी बांग्लादेश सरकार के समक्ष इस्कॉन संन्यासी का मुद्दा उठाया था। लेकिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर इन दिनों भारत विरोधी पार्टी बीएनपी और जमात जैसी पार्टियों का प्रभाव है जिसकी वजह से वह न सिर्फ भारत की बातों को अनदेखी कर रही है बल्कि भारत के साथ सीमा पर तनाव की स्थिति पैदा करने में लगी है। ( फोटो साभारः X )