हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य के पर्यटन केंद्र दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया था। उन्होंने इसका नाम जगन्नाथ धाम रखा है। लेकिन पुरी के ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण जगन्नाथ मंदिर की प्रबंधन कमेटी ने इस पर एतराज जताया है। यहां तक कि ओड़िशा के मुख्यमंत्री मोहन माझी ने बंगाल सरकार को पत्र लिखकर नाम बदलने का अनुरोध किया है।
दीघा में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। बताया गया है कि बंगाल सरकार ने करीब 250 करोड़ रुपये इस मंदिर के निर्माण पर खर्च किया है। दीघा को देश के पर्यटन मानचित्र पर तेजी से विकसित करने के इरादे से ही मंदिर का निर्माण किया गया है। 30 अप्रैल को भव्य समारोह आयोजित कर ममता बनर्जी ने इस मंदिर का उद्घाटन किया था।
लेकिन अब ओडिशा सरकार ने पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के नाम का पेटेंट कराने का फैसला किया है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर को श्री जगन्नाथ धाम और श्रीमंदिर भी कहा जाता है। इसके साथ ही वहां मिलने वाले प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है। पुरी को निलाचल भी कहा जाता है। और मंदिर के मुख्य मार्ग को बडा ढंडा कहा जाता है। ओड़िशा सरकार ने इन सब नामों श्री जगन्नाथ धाम, श्रीमंदिर, निलाचल और बडा ढंडा को पेटेंट कराने का फैसला किया है ताकि इस नाम का कहीं और उपयोग न हो सके। यह फैसला हाल ही में श्री जगन्नाथ टेंपल मैनेजिंग कमेटी ( एजेटीएमसी) की बैठक में लिया गया। बैठक में पुरी के महाराज दिव्यसिंह देब, जो जगन्नाथ मंदिर के मुख्य संरक्षक माने जाते हैं, के साथ ही जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौजूद थे। कमेटी के मुख्य प्रशासक आईएएस अधिकारी अरविंद पाढ़ी ने कहा कि जगन्नाथ मंदिर की संस्कृति, धार्मिक और अध्यात्मिक पहचान की रक्षा के लिए ट्रेडमार्क लेना जरूरी है।
12वीं सदीं में निर्मित पुरी का जगन्नाथ मंदिर ओड़िशा के लोगों के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से काफी महत्व रखा है। इस मंदिर के प्रति उनकी गहरी आस्था जुड़ी है। जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा ओड़िशावासियों के लिए सबसे बड़ा त्योहार होता है। इसलिए ओड़िशा में चाहे कोई सरकार हो, वह पुरी के जगन्नाथ मंदिर का विशेष ध्यान रखती है। वर्तमान बीजेपी की सरकार भी ऐसा कोई काम नहीं होने देना चाहती है जिससे पुरी के जगन्नाथ मंदिर के महत्व पर कोई आंच आये। इसलिए जब ममता बनर्जी ने दीघा में जगन्नाथ मंदिर का नामकरण जगन्नाथ धाम किया तो ओड़िशा के मुख्यमंत्री मोहन माझी की सरकार ने इस पर आपत्ति जतायी। माझी ने मई के शुरू में बकायदा ममता बनर्जी को एक पत्र लिख कर कहा है कि दीघा मंदिर का नाम जगन्नाथ धाम नहीं रखा जाए जो कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर की पहचान है। उन्होंने ममता बनर्जी से दीघा मंदिर के नाम पर फिर से विचार करने को अनुरोध किया है। उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि जगन्नाथ धाम किसी दूसरे मंदिर के लिए उपयोग किया जाएगा तो इससे पुरी के जगन्नाथ मंदिर के लाखों श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। इनमें बड़ी संख्या में बंगाल के भी श्रद्धालु शामिल हैं।
गौरतलब है कि बंगाल से हर साल लाखों लोग पुरी के जगन्नाथ मंदिर में पूजा करने के लिए जाते हैं। ओड़िशा सरकार के एक आंकड़े के मुताबिक 2023 में 97 लाख श्रद्धालु पुरी गये थे जिनमें साढ़े तेरह लाख बंगाल से ही थे। पिछले दिनों मुख्यमंत्री मोहन माझी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि पुरी भगवान जगन्नाथ का घर है और एकमात्र जगन्नाथ धाम है। पुरी चार धाम में से भी एक धाम है जिसे आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। कोई व्यक्ति पुरी के जगन्नाथ धाम का दोहराव नहीं कर सकता है। वहीं पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर के मुख्य संरक्षक दिव्यसिंह देब का कहना है कि पश्चिम बंगाल सरकार दीघा के अपने मंदिर के लिए जगन्नाथ धाम का उपयोग नहीं कर सकती है। यह हिंदू शास्त्र और भगवान जगन्नाथ की सदियों पुरानी परंपरा के विरुद्ध है।