Wednesday, August 6, 2025

दक्षिण में हिंदी विरोध: आखिर हिंदीभाषी दूसरी भाषाएं क्यों नहीं सिखते?

दक्षिण के राज्यों में हिंदी को लेकर गुस्सा जगजाहिर है। अब नया मामला कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू के एक एसबीआई बैंक का है जहां महिला बैंक अधिकारी द्वारा स्थानीय भाषा कन्नड़ न बोलकर हिंदी में बोलने की जिद पर अड़े रहने की घटना देशव्यापी चर्चा का विषय बन गयी है।

दरअसल पटना की रहने वाली प्रियंका, जो चंदापुर बैंक की ब्रांच मैनेजर थीं, ने एक कस्टमर से कन्नड़ में न बोलकर हिंदी में जवाब दिया तो कस्टमर उनसे कन्नड़ में बोलने को कहा। लेकिन प्रियंका ने यह इनकार कर दिया और कहा कि हिंदी में ही बोलेगी। जब कस्टमर ने उसे याद दिलाया कि यह कर्नाटक है तो प्रियंका ने कहा कि वह भारत में है और भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी हैं। यह पूरा मामला सोशल मीडिया पर वायरल हो गया जिसके बाद यह मामला राजनीतिक दलों के बीच भी चर्चा में आ गया। कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से लेकर बेंगलुरू से बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या तक ने इस घटना को दुर्भाग्यजनक बताते हुए स्थानीय भाषा में कर्मचारियों के बोलने पर बल दिया। सिद्धारमैया ने तो एसबीआई प्रबंधन से उचित कार्रवाई को कहा जिसके बाद बैंक मैनेजर प्रियंका का ट्रांसफर कर दिया गया।

बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने एक्स पर एक लंबा पोस्ट लिखकर कहा कि वह पहले भी संसद के अंदर और बाहर कह चुके हैं कि भिन्न राज्यों से आने वाले कर्मचारियों को स्थानीय भाषा में बोलने के लिए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि ग्राहकों से उन्हीं की भाषा में बात के लिए खासकर बैंक आदि कमर्चारियों को कहना चाहिए। सूर्या ने यह भी बताया कि उन्होंने हाल ही में संसद की पब्लिक अकाउंट कमेटी की बैठक के दौरान भी यह मुद्दा उठाया था जिसमें उचित कदम उठाने का आश्वासन दिया गया था।

बेंगलुरु में हिंदी को लेकर विरोध कोई नया नहीं है। पहले भी ऐसे बकाये हो चुके हैं। इन दिनों न सिर्फ दक्षिण के राज्यों, बल्कि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यो में भी हिंदी को लेकर वहां की जनता के कुछ हिस्सों में विरोध देखा गया है। हालांकि तमिलनाडु की भांति ही महाराष्ट्र में यह विरोध राजनीति दलों खासकर राज ठाकरे की पार्टी के द्वारा ज्यादा करते हुए देखा गया है। हाल की घटनाओं में हिंदी न बोलने पर लोगों की पिटाई करते हुए भी वीडियो वायरल हुए हैं।

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात जैसे राज्यों के लोग किसी गैर हिंदी प्रदेश में कामकाज, व्यापार आदि के लिए जाते हैं तो वे हिंदी में बात करते हैं। सालों साल वह हिंदी बोलते रहते हैं। कुछ प्रतिशत लोग स्थानीय भाषा सिखने में रुचि लेते हैं। यहीं पर दिक्कत है। हिंदीभाषी लोग यह नहीं समझते हैं कि जहां वे काम कर रहे हैं, वहां की भाषा सिखनी कितनी जरूरी है। इससे उनके कामकाज और जिंदगी कितनी आसान हो सकते हैं। यह काम सरकार नहीं कर सकती है। लोगों को ही यह समझना होगा कि उन्हें स्थानीय भाषा सिखनी चाहिए जिससे कि वह समाज में सही तरीके से घुलमिल सकें। इससे उनका कामकाज आसान हो जाएगा। आप महानगरों और बड़े शहरों में बिना स्थानीय भाषा सिखे तो काम चला सकते हैं लेकिन जैसे ही आप छोटे शहरों या ग्रामीण इलाकों में जाएंगे तो आपको दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। यह चीज हर उन लोगों को समझनी होगी जो अपने राज्य से बाहर जाकर दूसरे राज्य में काम करते हैं।

फिलहाल हमारे यहां यह व्यवस्था नहीं है कि स्कूलों में मातृ भाषा के साथ दूसरी कोई भाषा सिखायी जाये। हालांकि नई शिक्षा नीति में सरकार ने त्रिभाषा फॉर्मूला लागू किया है जिसमें स्थानीय और अंग्रेजी या कोई और विदेशी भाषा के साथ ही एक तीसरी भाषा की पढ़ाई करना अनिर्वाय है। हालांकि इसका तमिलनाडु कड़ा विरोध कर रहा है, यह बोलकर कर कि इस नीति के जरिये हिंदी को थोपा जाएगा। कई राज्यों ने अभी तक 2020 में आयी नई शिक्षा नीति को लागू नहीं किया है।

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